Saturday, 17 September 2016

मशहूर रैपर गायक क्विन गेट्स और उनकी पत्नी मुसलमान हुए

मशहूर रैपर गायक क्विन गेट्स और उनकी पत्नी ने, अल्हम्दुलिल्लाह ,जो पिछले साल ही मुसलमान हुए हैं, इस साल हज किया है।

http://myzavia.com/2016/09/14/वीडियो-अमरीकी-रैपर-क्वि/

Friday, 16 September 2016

सऊदी अरब में ब्रिटिश राजदूत के बाद अब 1600 चीनी कर्मचारियों ने अपनाया इस्लाम


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सऊदी अरब में ब्रिटिश राजदूत के बाद अब 1600 चीनी कर्मचारियों ने अपनाया इस्लाम

September 15, 2016

हाल ही में सऊदी अरब से ब्रिटिश राजनायिक और उनकी पत्नी के इस्लाम अपनाने की खबर आई थी कि अब 1600 चीनी कर्मचारियों के इस्लाम कबूल करने की खबर आई है.

मक्का के 6.7 अरब के मेट्रो रेलवे स्टेशन के प्रोजेक्ट निर्माण कार्य में शामिल इस्लाम कबूल करने वाले ये  1600 चीनी कर्मचारी वर्किंग वीजा लेकर मक्का में काम कर रहे थे. यह प्रोजेक्ट 3 साल पहले ही शुरू किया गया था.

इस्लाम कबुलने वाले सभी कर्मचारियों को ईद के पाक मौके पर एक स्वागत समारोह में तोहफे भी दिए गए हैं. गौरतलबी रहें कि ब्रितानी राजदूत साइमन पॉल कोलिस और उनकी पत्नी हुदा मुजारकेश के इस्लाम अपनाने के साथ इस वर्ष हज भी अदा किया हैं.

राजदूत साइमन कोलिस

सऊदी अरब की राजकुमारी बाशमाह ने राजदूत कोलिस को इस्लाम अपनाने पर बधाई दी और ट्वीट किया कि, “राजदूत और उनकी पत्नी को विशेष शुभकामनाएं.” इसके जवाब में उन्होंने राजकुमारी बाशमाह का शुक्रिया अदा किया.

Thursday, 15 September 2016

अल्लाहु_अकबर

#अल्लाहु_अकबर

सऊदी अरब में तैनात ब्रिटिश राजदूत  साइमन कॉलिज़ ने इस्लाम कब़ूल कर लिया ,और अपनी ज़ौजा (बीवी) मोहतरमा सैय्यदा हदी़ के साथ इसी साल हज भी अदा कर लिया, #अल्लाह_सुब्हानाहु_तआला के रहमो करम से। #सुब्हान__अल्लाह

#साइमन_कॉलिज़ 1978 में ब्रिटिश विदेश मंत्रालय से जुड़े हुए थे ।
#बहरीन, कतर, #इराक, ओमान आदि में 30 साल तक अपने देश के लिए सेवा करते रहे इसकेे बाद जनवरी 2015 में साइमन कॉलिज़ को सऊदी अरब में ब्रिटिश राजदूत बना दिया गया था ।
और इस साल हज के महीने मे साइमन कॉलिज़ ने इस्लाम कब़ूल कर लिया।
#सुब्हान_अल्लाह

Msaha Allah

अल्लाहु_अकबर

सऊदी अरब में तैनात ब्रिटिश राजदूत  साइमन कॉलिज़ ने इस्लाम कब़ूल कर लिया ,और अपनी ज़ौजा (बीवी) मोहतरमा सैय्यदा हदी़ के साथ इसी साल हज भी अदा कर लिया, #अल्लाह_सुब्हानाहु_तआला के रहमो करम से। #सुब्हान__अल्लाह

#साइमन_कॉलिज़ 1978 में ब्रिटिश विदेश मंत्रालय से जुड़े हुए थे ।
#बहरीन, कतर, #इराक, ओमान आदि में 30 साल तक अपने देश के लिए सेवा करते रहे इसकेे बाद जनवरी 2015 में साइमन कॉलिज़ को सऊदी अरब में ब्रिटिश राजदूत बना दिया गया था ।
और इस साल हज के महीने मे साइमन कॉलिज़ ने इस्लाम कब़ूल कर लिया।
#सुब्हान_अल्लाह

http://www.kohraam.com/international/british-ambassador-embraces-islam-performs-haj-78450.html

Sunday, 11 September 2016

अपने इस्लाम विरोधी अतीत पर मुझे अफसोस है: अनार्ड वॉन डूर्न Dutch Politician Accepts Islam

अपने इस्लाम विरोधी अतीत पर मुझे अफसोस है: अनार्ड वॉन डूर्न Dutch Politician Accepts Islam

क्या ये संभव है कि जीवन भर आप जिस विचारधारा का विरोध करते आए हों एक मोड़ पर आकर आप उसके अनुनायी बन जाएं. कुछ ऐसा ही हुआ है नीदरलैंड में.

अनार्ड वॉन डूर्न

लंबे समय तक इस्लाम की आलोचना करने वाले डच राजनेता अनार्ड वॉन डूर्न ने अब इस्लाम धर्म  कबूल लियाहै. अनार्ड वॉन डूर्न नीदरलैंड की घोर दक्षिणपंथी पार्टी पीवीवी यानि फ्रीडम पार्टी के महत्वपूर्ण सदस्य रह चुके हैं. यह वही पार्टी है जो अपने इस्लाम विरोधी सोच और इसके कुख्यात नेता गिर्टी वाइल्डर्स के लिए जानी जाती रही है.

मगर वो पांच साल पहले की बात थी. इसी साल यानी कि 2013 के मार्च में अर्नाड डूर्न ने इस्लाम धर्म क़बूल करने की घोषणा की.

नीदरलैंड के सांसद गिर्टी वाइल्डर्स ने 2008 में एक इस्लाम विरोधी फ़िल्म 'फ़ितना' बनाई थी. इसके विरोध में पूरे विश्व में तीखी प्रतिक्रियाएं हुईं थीं.

अनार्ड डूर्न जब पीवीवी में शामिल हुए तब पीवीवी एकदम नई पार्टी थी. मुख्यधारा से अलग-थलग थी. इसे खड़ा करना एक चुनौती थी. इस दल की अपार संभावनाओं को देखते हुए अनार्ड ने इसमें शामिल होने का फ़ैसला लिया.

पहले इस्लाम विरोधी थे

अनार्ड, पार्टी के मुसलमानों से जुड़े विवादास्पद विचारों के बारे में जाने जाते थे. तब वे भी इस्लाम विरोधी थे.

वे कहते हैं, "उस समय पश्चिमी यूरोप और नीदरलैंड के बहुत सारे लोगों की तरह ही मेरी सोच भी इस्लाम विरोधी थी. जैसे कि मैं ये सोचता था कि इस्लाम बेहद असहिष्णु है, महिलाओं के साथ ज्यादती करता है, आतंकवाद को बढ़ावा देता है. पूरी दुनिया में इस्लाम के ख़िलाफ़ इस तरह के पूर्वाग्रह प्रचलित हैं."

साल 2008 में जो इस्लाम विरोधी फ़िल्म 'फ़ितना' बनी थी तब अनार्ड ने उसके प्रचार प्रसार में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था.इस फ़िल्म से मुसलमानों की भावनाओं को काफ़ी ठेस पहुंची थी.

वे बताते हैं, "'फ़ितना' पीवीवी ने बनाई थी. मैं तब पीवीवी का सदस्य था. मगर मैं 'फ़ितना' के निर्माण में कहीं से शामिल नहीं था. हां, इसके वितरण और प्रोमोशन की हिस्सा ज़रूर था."

अनार्ड को कहीं से भी इस बात का अंदेशा नहीं हुआ कि ये फ़िल्म लोगों में किसी तरह की नाराज़गी, आक्रोश या तकलीफ़ पैदा करने वाली है.

वे आगे कहते हैं, "अब महसूस होता है कि अनुभव और जानकारी की कमी के कारण मेरे विचार ऐसे थे. आज इसके लिए मैं वाक़ई शर्मिंदा हूं."

सोच कैसे बदली?

नीदरलैंड के सांसद गिर्टी वाइल्डर्स ने 
2008 में इस्लाम की आलोचना करने वाली
एक फ़िल्म बनाई थी.

अनार्ड ने बताया, "जब फ़िल्म 'फ़ितना' बाज़ार में आई तो इसके ख़िलाफ़ बेहद नकारात्मक प्रतिक्रिया हुई. आज मुझे बेहद अफ़सोस हो रहा है कि मैं उस फ़िल्म की मार्केटिंग में शामिल था."

इस्लाम के बारे में अनार्ड के विचार आख़िर कैसे बदलने शुरू हुए.

वे बताते हैं, "ये सब बेहद आहिस्ता-आहिस्ता हुआ. पीवीवी यानि फ़्रीडम पार्टी में रहते हुए आख़िरी कुछ महीनों में मेरे भीतर कुछ शंकाएं उभरने लगी थीं. पीवीवी के विचार इस्लाम के बारे में काफ़ी कट्टर थें, जो भी बातें वे कहते थे वे क़ुरान या किसी किताब से ली गई होती थीं."

इसके बाद दो साल पहले अनार्ड ने पार्टी में अपनी इन आशंकाओं पर सबसे बात भी करनी चाही. पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.

तब उन्होंने क़ुरान पढ़ना शुरू किया. यही नहीं, मुसलमानों की परंपरा और संस्कृति के बारे में भी जानकारियां जुटाने लगें.

मस्जिद पहुंचे

अनार्ड वॉन डूर्न इस्लाम विरोध से इस्लाम क़बूल करने तक के सफ़र के बारे में कहते हैं, "मैं अपने एक सहयोगी से इस्लाम और क़ुरान के बारे में हमेशा पूछा करता था. वे बहुत कुछ जानते थे, मगर सब कुछ नहीं. इसलिए उन्होंने मुझे मस्जिद जाकर ईमाम से बात करने की सलाह दी."

उन्होंने बताया, "पीवीवी पार्टी की पृष्ठभूमि से होने के कारण मैं वहां जाने से डर रहा था. फिर भी गया. हम वहां आधा घंटे के लिए गए थे, मगर चार-पांच घंटे बात करते रहे."

अनार्ड ने इस्लाम के बारे में अपने ज़ेहन में जो तस्वीर खींच रखी थी, मस्जिद जाने और वहां इमाम से बात करने के बाद उन्हें जो पता चला वो उस तस्वीर से अलहदा था.

वे जब ईमाम से मिले तो उनके दोस्ताने रवैये से बेहद चकित रह गए. उनका व्यवहार खुला था. यह उनके लिए बेहद अहम पड़ाव साबित हुआ. इस मुलाक़ात ने उन्हें इस्लाम को और जानने के लिए प्रोत्साहित किया.

वॉन डूर्न के मस्जिद जाने और इस्लाम के बारे में जानने की बात फ़्रीडम पार्टी के उनके सहयोगियों को पसंद नहीं आई. वे चाहते थे कि वे वही सोचें और जानें जो पार्टी सोचती और बताती है.

अंततः इस्लाम क़बूल लिया

मगर इस्लाम के बारे में जानना एक बात है और इस्लाम धर्म क़बूल कर लेना दूसरी बात.

पहले पहले अर्नाड के दिमाग़ में इस्लाम धर्म क़बूल करने की बात नहीं थी. उनका बस एक ही उद्देश्य था, इस्लाम के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना. साथ ही वे ये भी जानना चाहते थे कि जिन पूर्वाग्रहों के बारे में लोग बात करते हैं, वह सही है या यूं ही उड़ाई हुई. इन सबमें उन्हें साल-डेढ़ साल लग गए. अंत में वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस्लाम की जड़ें दोस्ताना और सूझ बूझ से भरी हैं. इस्लाम के बारे में ख़ूब पढने, बातें करने और जानकारियां मिलने के बाद अंततः उन्होंने अपना धर्म बदल लिया.

अनार्ड के इस्लाम क़बूलने के बाद बेहद मुश्किलों से गुज़रना पड़ा. वे कहते हैं, "मुझ पर फ़ैसला बदलने के लिए काफ़ी दबाव डाले गए. अब मुझे ये समझ में आ रहा था कि मेरे देश नीदरलैंड में लोगों के विचार और सूचनाएं कितनी ग़लत हैं."

परिवार और दोस्तों को झटका

परिवार वाले और दोस्त मेरे फ़ैसले से अचंभित रह गए. मेरे इस सफ़र के बारे में केवल मां और गर्लफ्रेंड को पता था. दूसरों को इसकी कोई जानकारी नहीं थे. इसलिए उन्हें अनार्ड के मुसलमान बन जाने से झटका लगा.

कुछ लोगों को ये पब्लिसिटी स्टंट लगा, तो कुछ को मज़ाक़. अनार्ड कहते हैं कि अगर ये पब्लिसिटी स्टंट होता तो दो-तीन महीने में ख़त्म हो गया होता.

वे कहते हैं, "मैं बेहद धनी और भौतिकवादी सोच वाले परिवार से हूं. मुझे हमेशा अपने भीतर एक ख़ालीपन महसूस होता था. मुस्लिम युवक के रूप में अब मैं ख़ुद को एक संपूर्ण इंसान महसूस करने लगा हूं. वो ख़ालीपन भर गया है." 

(बीबीसी से बातचीत पर आधारित)
http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2013/11/131111_dutch_politician_islam_sk.shtml

Thursday, 8 September 2016

अज़ान की आवाज़ मेरे दिल में बस गई – प्रियंका चोपड़ा

जीत लिया था प्रियंका का दिल

प्रकाश झा निर्देशित और प्रियंका चोपड़ा स्टारर फिल्म जय हो गंगाजल का ट्रेलर मंगलवार को रिलीज हुआ. इस फिल्म की अधिकांश शूटिंग मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुई है. न्यूज 18 इस मौके पर प्रियंका की शूटिंग से जुड़े खास अनुभव को शेयर कर रहा है.

पहली बार शूटिंग के सिलसिले में भोपाल पहुंची प्रियंका यहां की खूबसूरती की कायल हो गई थीं. प्रियंका का कहना है कि वो भोपाल आई तो थी प्रियंका चोपड़ा बनकर लेकिन लौट रही है प्रियंका भोपाली बनकर.

प्रियंका चोपड़ा का दिल भोपाल की अजान ने जीत लिया था. भोपाल की मस्जिदों से शाम के वक्त आने वाली अजान की आवाज प्रियंका के दिल में बस गई हैं.

कट्टरपंथी नाज़ी और इस्लाम धर्म का जमकर विरोध करने वाले ‘वेर्नीयर क्लावन’ ने स्वीकार किया इस्लाम धर्म

Former Pro-Nazi Islamophobe German MP Werner Klawun converts to Islam
जर्मनी : कट्टरपंथी नाज़ी और इस्लाम धर्म का जमकर विरोध करने वाले ‘वेर्नीयर क्लावन’ ने स्वीकार किया इस्लाम धर्म
In an interview with the German newspaper Bild, Werner who changed his name to Ibrahim said he wanted to know more about Islam after reading the Eastern Divan and poems of the great German poet Johann Wolfgang von Goethe praising Prophet Muhammad (peace be upon him). That led him to read the German translation of the Quran and ultimately accept Islam.

Goes to show even the enemies can one day become guided once they are exposed to the unbiased truth
पवित्र क़ुरआन की आयत है कि ईश्वर जिसको चाहता है उसका मार्ग दर्शन करता है। यह बात जर्मनी के एक नागरिक पर सच्ची उतरती है और ईश्वर की एक कृपा दृष्टि उनके लोक परलोक को ही बदल कर रख दिया।
जर्मनी के शहरी वेर्नीयर क्लावन इस्लाम धर्म स्वीकार करने से पहले तक बहुत कट्टर नाज़ी थे और इस्लाम धर्म का जमकर विरोध किया करते थे किन्तु ईश्वर की कृपा दृष्टि वेर्नीयर पर पड़ी और उनका सब कुछ बदल गया। पहले जो हाथ इस्लाम के विरुद्ध नारे लगाने और लोगों को इस्लाम के विरुद्ध उकसाने में उठते थे अब वही हाथ ईश्वर की उपासना में उठने लगे और अब वह पांचों समय की नमाज़ मस्जिद में जाकर अदा करते हैं।
उनके भीतर यह बदलाव पवित्र क़ुरआन की तिलावत से पैदा हुआ है।
वह पवित्र क़ुरआन की तिलावत के बारे में कहते हैं कि जब उन्होंने जर्मनी के महान शायर जोहान वुल्फ़गांग के लिखे दिवान और उनके शेर पढ़े जिसमें जोहान ने पैग़म्बरे इस्लाम की बहुत अधिक प्रशंसा की है तो उनके दिल में इस्लाम को अधिक और निकट से जानने की इच्छा पैदा हुई।
पवित्र क़ुरआन पढ़ने के बाद उनकी समझ में आया कि दुनिया और जीवन का जो रहस्य क़ुरआन ने बयान किया है और जिस प्रकार मानवीय मुद्दों को उसने बयान किया है वैसा किसी भी धार्मिक ग्रंथ में बयान नहीं किया गया है। इसी से प्रभावित होकर उन्होंने इस्लाम धर्म को गले लगा लिया और सीरिया, इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान से जाने वाले शरणार्थियों की सेवा करते हैं।

Sunday, 4 September 2016

Model / actress Aliza Kim revert to islam - hindi

Model / actress Aliza Kim revert to islam - hindi

नव मुस्लिम Dawa Queen सेल्‍फी की शौकीन एलीजा किम फेसबुक पर एक्टिव रहती हैं एजीला अपने फेसबुक नोट में बताती हैं कि "मैं ईसाई थी, धार्मिक ईसाई परिवार से संबंध है और अमेरिकी समाज के हिसाब से अच्छी धार्मिक लड़की थी। ईसाई ऐसा बहुत कुछ कर सकते हैं जो मुसलमान नहीं कर सकते तो इस्लाम से पहले मेरा काम कुछ गैर इस्लामी था, अमेरिकी मॉडल और एक्ट्रेस थी, लेकिन पार्टियों में जाना और बुरा काम करने वाली नहीं थी। मुझे हमेशा से भगवान के अस्तित्व पर विश्वास था और इबादत में डूबी रहने वाली ईसाई थी, लेकिन मुझे हमेशा किसी ऐसी चीज़ की तलाश थी जो अधिक पवित्रता, अधिक प्राकृतिक सत्य हो। जीवन के संकट ने मुझे जीवन के उद्देश्य की खोज के लिए मजबूर किया, ईसाई धर्म में ही सच्चे धर्म की खोज की लेकिन न मिल सकी।
''अमेरीका में पैदा हुयी एलीजा ने भविष्य बनाने के लिए बाधाओं के बावजूद, स्कूल में उत्कृष्ट प्रदर्शन से शैक्षणिक छात्रवृत्ति जीती, अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में डबल स्नातक डिग्री और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की। बचपन से शिक्षा में बहुत दिलचस्पी थी सो धार्मिक दिलचस्‍पी के कारण इस विषय पर भी रिसर्च (अनुसंधान) किया। बाइबिल और ईसाई धर्म के बारे में ऐतिहासिक पुस्तकें पढ़ना शुरू किया। दर्जन से अधिक देशों की यात्रा कर चुकी अलिज़ा किम को बाइबिल के प्राचीन नुस्खों में इतनी रुचि हुई कि आखिर मैं हज़रत इसा मसीह की भाषा आरामि (इब्रानी) भी सीख डाली और आखिरकार यह जाना कि बाइबल को अंग्रेजी अनुवादों में कितना विकृत किया गया। जब ईसाई थी तब भी मुझे विश्वास था कि Trinity पवित्र त्रिदेव का विश्वास जो ईसाई धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा है सही नहीं (अर्थात "एक में तीन" और "तीन में एक"। ईसाई ईश्वर को एक ही मानते में मगर एक में तीन हस्तियों को शामिल करते हैं।) ईश्वर और मसीह अलैहिस्सलाम दो अलग हस्तियां हैं। यीशु का सूली पर चढ़ाया चढ़ाया जाना एक दूसरा ऐसा मुद्दा था जिस पर मैं ईसाई धर्म से सहमत नहीं थी।

मलेशिया में सेटल होने के बाद ईसाई धर्म के बाद मैं दूसरे धर्मों को देखा, इस्लाम के बारे में मुझे पता था कि यह भी इब्राहीम धर्मों abrahamic religions के अंतर्गत आता है इसी बात ने मुझे इसके अध्ययन की इच्छा हुई और मैंने इसे पढ़ना शुरू किया, बिना रूके पढती गयी, अंततः अल्हम्दु लिल्लाह ईश्वर की सच्चाई इस्लाम में मिली जिसकी मुझे तलाश थी। अल्लाह की नवाज़िश है कि मैं ऐसे घर में पली थी जहां लोगों से नफरत करना सिखाया नहीं गया था, न ही सब कुछ नकारात्मक दृष्टि से देखने के लिए प्रशिक्षित किया गया इसीलिए इस्लाम के बारे में वैसा नहीं सोचती थी जैसा अमेरिकी मीडिया दिखाता है । इस्लाम स्वीकार करने के बाद मैं कह सकती हूँ कि इस्लाम कितना शांतिप्रिय, सकारात्मक और सुखद धर्म है और हर मामले में दूसरे हर धर्म से अच्छा है। मुझे हमेशा से एक संगठित Organized जीना पसंद था, जीवन की हर चीज में मनमानी नहीं करना चाहती थी, यह दर्शन गलत है क्योंकि हो सकता है आप कुछ गलत करना चाहें सो मुझे रोक टोक बुरी नहीं लगती, यह जीवन को दिशा देती है, इस्लाम लाकर पांच नमाज़ें पढ़ना एक चुनौती थी, जो मनुष्य आदी न हो इसके लिए यह मुश्किल होगा, अरबी भाषा में नमाज़ याद करना मेरे लिए बहुत मुश्किल था, लेकिन अल्हम्दु लिल्लाह यह सब खुशी खुशी किया, यह सब मुझे बहुत सकून देता है, क्योंकि मुझे पहले ही अल्लाह की इबादत का शौक था और यह याद रखना कि यह सब मुझे अल्लाह का प्यार देगा इससे बढ़कर क्या होगा? मझे नमाज़ का समय बहुत खुशी देता है क्योंकि यह अल्लाह से मिलने का समय है। मुझे इस्लामी कपड़े और हिजाब में भी कोई समस्या नहीं हुई, वास्तव में मैं खुद को ढांपना पसंद है, इस्लाम से पहले भी मेरी माँ मुझे लंबी आस्तीन और लंबे पाजामे में ही देखना पसंद करती थीं, तो मैं इस समय भी काफी बेबाक नहीं थी। हिजाब आपको अपने पर भरोसा देता है,  इस्लाम लाने के बाद घर से निकलते समय यह सवाल आपके सामने नहीं होते कि आप कैसे सटाइलश लग रहे हैं लेकिन यह विचार होता है कि अल्लाह आप से खुश है या नहीं? यह एक बिल्कुल अलग प्रकार के भावनाओं की दुनिया है। और यह सब आप याद दिलाता है कि जीवन का एक उद्देश्य है आप यहाँ इसलिए हैं कि अल्लाह को खुश कर सकें, ताकि जब तुम परीक्षा अच्छी तरह पास करके भविष्य की दुनिया में जाएं तो आप के पास सब कुछ हो।मॉडलिंग और एक्टिंग कैरियर में लोगों की इच्छा का ख्याल रखना पड़ता है, सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीर पेश करते हुए में सोचती थी क्या लोगों को ये तस्वीर अच्छी लगेगी? और जितने लोग इस फोटो को लाइक / पसंद करेंगे। उसकी चिंता होती। क्योंकि इस पेशे में हर काम लोगों की इच्छा से करना पड़ता है। हिजाब के बाद मुझे खुशी इस बात की है कि लोग मेरे ज्ञान, बुद्धि और प्रतिक्रिया के आधार पर मुझे सराहते हैं न कि मेरी शक्ल व सूरत या बाहरी हुसन के आधार पर। जब भी इस्लाम के किसी भी आदेश का पालन कर लेती हूँ तो एक मीठा सा एहसास होता है कि अल्लाह की रजा हासिल कर रही हूँ और यह एहसास बहुत प्यारा है, यह बहुत ही प्यारा एहसास है।
टीवी और इन्‍टरनेट के जरिए इस्‍लाम को इसाईयों से परिचय कराने के इस जज्‍बे के कारण ही अपने उन्‍हें Queen of The Deen दीन की रानी कहते हैं।

Notable Reverts: Please Youtube these people. These are just a few people I found interesting but there are many more notable reverts who have shared their stories on Youtube that you can watch.

a. Yvonne Ridley, ex-Taliban captive and internationally acclaimed news correspondent.
b. Yusof Estes, former Christian preacher and entrepreneur.
c. Lauren Booth, Tony Blair’s sister-in-law and news correspondent formerly based in Gaza.
d. There have been many American military veterans who have reverted to Islam after serving in the Middle East. You can search for ‘American soldier Islam’ in Youtube.


नोटः यह लेख नेट पर उपलब्‍ध जानकारियों पर आधारित है.... मुहम्‍मद उमर कैरानवी
Model / actress Aliza Kim converted to islam
https://www.youtube.com/watch?v=1JfYQVdSPag

 Aliza Kim - Demo for women's self defense

क्रिस्टियाने बाकर एम. टी. वी. की पूर्व होस्‍ट मुसलमान हो गयी

क्रिस्टियाने बाकर एम. टी. वी. की पूर्व होस्‍ट मुसलमान हो गयी

क्रिस्टियाने बाकर का मुहब्‍बत ने साथ छोडा, लेकिन इमरान खान की दोस्‍ती के दिनों में आपसी बहस और धार्मिक पुस्‍तकों के अध्‍ययण से इस्‍लाम को इतना समझ लिया था कि उसने  इस्‍लाम ना छोडा, इसाई परिवार की यह मशूहर एम टी वी की पूर्व होस्‍ट Kristiane Backer  कुछ समय यहूदी परिवार के साथ भी रह चुकने के कारण काफी सवालों के जवाब की तलाश में थी, जिनके जवाब इस्‍लाम में पाकर मुसलमान हो गयी।
 उलझन से भरे हुए दिनों में पूर्व Dr Coxon अर्थात नयी मुसलमान   मुस्लिम डॉक्टर अमीना  लन्दन की हार्ट स्ट्रीट में उनका क्लीनिक था उसके लिए एक चमत्कार साबित हुईं उन्‍हों ने इस मशहूर पत्रकार को समझाया कि तुम्‍हारी जिंदगी में इमरान का इतना ही रोल था वो तुम्‍हें इस्‍लाम से परिचित कराने आया था कर गया,  गम में डूबने के बजाये अब आगे बढो। बाद में इन दोनों ने एक साथ हज किया और रोज़ह रसूल पर उपस्थिति दी। 2006 में हज करने गयी वहां काले गिलाफ में काबा के सामने अमीर-गरीब, काले-गोरे किसी फर्क के बिना प्रार्थना करते देख कर बेहद खुश हुयी।

  She Converted to Islam in April, 1995 in a Mosque in London
अक्‍सर अपनी बातों में इमरान खान के साथ बिताये समय की बातें ताजा करती रहती हैं, 1992 में विश्‍वकप जीतने पर टीवी के लिए इमरान खान का इन्‍ट्व्‍यू के लिए मुलाकातें हुयी, प्रेम हो गया, लेकिन इमरान खान किन्‍हीं शंकाओं में घिरकर जेमिमा से विवाह कर लिया था । 

क्रिस्टीन का कहना है कि इमरान खान उन दिनों में बहुत नियमित ... हम सबसे अलग होकर पांचों वक्त की नमाज पढ़ता था। रमज़ान में पूरे उपवास रखता था ...  वह पूरी तरह से शराब से परहेज करता था। वह हर समय मुझे इस्लाम की ओर आकर्षित करने की कोशिश करता रहता था ... एक बार सीरते रसूल अल्लाह मुझे पढ़कर सुना रहा था तो वह रोने लगा ... मेरे लिए यह एक झटका था ... भावनायें जिसके चेहरे पर स्पष्ट नहीं होती थीवह इमरान कैसे बेखुद होकर आंसू बहा सकता है। मैं कारण पूछा तो उसने कहा '' क्रिस्टीन मुझे अपने पैग़म्बर से इतनी मुहब्बत है कि उनके संबंध से मेरी आँखें आँसुओं से भर जाती हैं '' ... क्या आप अभी भी मुझे दोषी ठहरा सकते हैं कि मेरी दृष्टि में इमरान खान की प्रतिष्ठा इस पुस्तक के पढ़ने से अधिक ऊंची हो गयी। एक बार क्रिस्टीन कुछ 'अवधि बाद इमरान के लंदन के फ्लैट में जाती है ... कड़ाके की ठंड है और सेंट्रल हिटिंग  काम नहीं कर रही और वह  हीटर जलाने के लिए तीली रौशन करती है। एक लौ भड़कती है जो पूरे फ्लैट को अपनी चपेट में लेकर जला डालती है। कर क्रिस्टीन अपनी जान बचाती है लेकिन चिंतित है कि जब इमरान को बताना चाहूंगी कि मेरी कोताही के कारण उसका  भव्य फ्लैट राख हो चुका है तो वह मुझे कभी माफ नहीं करेगा ... कुछ समय बाद वह हिम्मत करके उसे फोन करती है और फ्लैट की आग के बारे में डरते डरते खबर करती है तो इमरान की प्रतिक्रिया उसे हैरान कर देती है। वह निहायत मुहब्‍बत से कहता है बहुत अच्‍छा हुआ कि मेरे गुनाहों की गवाह चीजें खतम हो गयीं।
 केंसर हास्पिटल बनवाने जैसे काम इमरान खान के मुहम्‍मद साहब साहब प्रभावित होने की गवी देते हैं
German Author Kristiane Backer on Pakistan, Islam & Imran Khan
 इमरान खान के साथ बुल्‍हे शाह के कलाम  से परिचित हुयी उनके कलाम से बेहद सुकून पाती,  यह पंक्तियां उन्‍हें बेहद पसंद आती हैंः  

पढ़ पढ़ कर आलम फ़ाज़िल गया,
कभी अपने आप को पढ़ा ही नहीं,
मस्जिद और मंदिरों में तो चला जाता है,
कभी अपने अंदर झांक कर देखा है नहीं
यूं ही रोज शैतान से लड़ता है
कभी अपने नफ्स से लड़ा ही नहीं,
बुल्ले शाह आसमानों की बातें करते हो
लेकिन जो दिल में है उसे परखा ही नहीं। 

 अमेरिकी उपन्यासकार ने एक बार क्रिस्टीना बेकर से सवाल किया कि जब उन्होंने इस्लाम कबूल किया तो उनके समाज, लोगों और मीडिया का क्या प्रतिक्रिया थी? क्रिस्टीना बेकर ने सवाल के जवाब में कहा कह''में अपने माता पिता से शुरू करती हूँ। उन्होंने मुझसे कहा कि तुम इमरान खान से शादी नहीं कर रही तो उसका धर्म क्यों अपनाना चाहती हो? तो मैंने जवाब में कहा कि देखिए! आप धर्म का फैसला किसी दूसरे को नहीं देख सकते। आप को गहराई में देखना पड़ता है। मैंने इस्लाम इमरान खान की वजह से नहीं अपनाया, इमरान ने तो बस इस्लाम का परिचय करवाया था।

क्रिस्टीना बेकर ने निजी टीवी कार्यक्रम में बातचीत करते हुए कहा कि मीडिया मेरे स्वीकृति पर रिएक्शन काफी नकारात्मक था और वे इसे नकारात्मक तरीके से पेश कर रहा था। मीडिया का कहना था कि '' यह बुद्धि खो बैठी है '' मीडिया ने मेरे बारे में बहुत अजीब बातें की कि आतंकवाद फैलाना चाहती हूँ? । क्रिस्टीना बेकर ने कहा कि 1995 में जर्मन अखबारों की हेड लाइन बनकर प्रकाशित हुई। मुझे संतोष है कि में मुसलमान हूँ,  बहुत कठिनाइयों उठायीं लेकिन अल्लाह के करम से सब हल हो गई।

'एमटीवी से मक्का तक' की कहानी Book

एमटीवी से मक्का तक - जर्मनी की पहली एमटीवी वीजे क्रिस्टियाने बाखर की बहुत ही व्यक्तिगत किताब है. उन्‍हों ने पाकिस्तान के सबसे मशहूर क्रिकटर इमरान खान की वजह से.1995 ने इस्‍लाम कुबूल किया, 

क्रिस्टियाने बाकर
Kristiane Backer
हैमबर्ग की क्रिस्टियाने बाकर ने वह जिंदगी जी है जो दुनियाभर के लाखों युवा जीना चाहते हैं. 43 साल की क्रिस्टियाने एमटीवी में वीजे रहीं. इसके अलावा उन्होंने कई दूसरे टीवी चैनलों पर भी कई शो पेश किए. मॉडोना हो या माईकल जैक्सन, ब्रैड पिट या टॉम क्रूस, क्रिस्टियाने की मुलाकात सबसे हुई. क्रिस्टियाने की जिंदगी बस एक बड़ी पार्टी थी, कभी कुछ घंटों के लिए एक शहर में फिर कुछ घंटों बाद दूसरे शहर में. क्रिस्टियाने बहुत ख़ूबसूरत हैं. ऊंची और छरछरी कद काठी, भूरे बाल और शालीन व्यक्तित्व. लेकिन अंदर से क्रिस्टियाने खालीपन महसूस करने लगी. उन्होने अपनी डायरी में लिखा है,

"मैं इतना बुरा महसूस कर रही हूँ जितना शायद पहले कभी नहीं किया. हर दिन मैं इतना काम करती हूँ, लेकिन मैं अकेले ही होतीं हूं. किस दिशा में मेरी ज़िंदगी जा रही है, कुछ समझ नहीं आ रहा है."

फिर क्रिस्टियाने की मुलाकात
लंदन में इमरान खान से हुई. किस्मत समझिए या संयोग -दोनों में प्यार हो गया. क्रिस्टियाने शादी और अपने एक परिवार पाने का सपना संजोने लगीं. इमरान के साथ वह क़ुरआन भी पढ़ने लगी और बार इमरान उन्हें पाकिस्तान भी लेकर गए. क्रिस्टियाने के लिए यह एक बिल्कुल नई दुनिया थी.

"इस्लाम में पहली चीज़ तो यह है कि हर दिन कई बार नमाज़ पढ़ने से ईश्वर के साथ रिश्ता बहुत गहरा हो जाता है. बंदा पांच बार नमाज़ पढ़ता है और अपने आपको बार-बार ईश्वर से जोड़ता है. इससे आध्यात्मिकता बहुत सहज और सुगम हो जाती है. ईसाइयत में वह इतनी सुगम नहीं है. यह बात भी है कि अतीत में ईसाई चर्च के विभिन्न धार्मिक सिद्धांत ठीक से मेरे पल्ले नहीं पड़ रहे थे-- जैसे, ईसाइयत में त्रिमूर्ति या त्रिदेव वाला सिद्धांत. मुझे यह बात भी जंचती है कि इस्लाम में बच्चा जन्म के समय हर पाप से मुक्त होता है. मैं ईसायत की इस बात को समझ नहीं पाती कि कोई बच्चा शुरू से ही पापों का गठरी ले कर पैदा होता है. इस तरह, तार्किक और बौद्धिक दृष्टि से इस्लाम को मैं कहीं बेहतर समझ पाती हूं. इसमें लोगों से मिली उस आत्मीयता का भी बहुत बड़ा हिस्सा है, जिनसे मैं मिली हूं."

क्रिस्टियाने अब लंबे कपड़े पहनने लगी थी. छोटे मिनी स्किर्ट या टॉप नहीं. वह स्वीकार करतीं है कि इमरान खान अपना कैंसर अस्पताल बनाने के काम में व्यस्य रहने की वजह से उनको ज़्यादा वक्त नहीं दे पाते थे. उनके मां बाप और दोस्तों को शक होता है लेकिन क्रिस्टियाने इमरान खान पर अपने विश्वास के साथ उनके शक को दूर कराती रही. लेकिन जब अचानक इमरान खान ने उनके साथ रिश्ता तोड़ दिया तब क्रिस्टियाने को सदमा लगता है. कुछ समय बाद उनकी शादी फिर जेमाईमा गोलडस्मिथ से हो जाती है. क्रिस्टियाने का सपना अधूरा रह जाता है. फिर भी वह 1995 में इस्लाम को कबूल करती हैं. उनका कहना है कि उन्होंने इमरान खान को माफ़ कर दिया क्योंकि इमरान ने उनको एक रास्ता दिखाया जो बहुत ज़रूरी था. ख़ासकार जर्मन मीडिया में इस बात को लेकर काफी विवाद उठे. एक टीवी चैनल के साथ क्रिस्टियाने का कॉनट्रैक्ट भी रद्द कर दिया गया और क्रिस्टियाने को बहुत सी खरी खोटी बातें भी सुननी पड़ीं. क्रिस्टियाने का मानना है कि इस्लाम के नाम पर किए गए हमलों की वजह से दुनियाभर में इस्लाम को शक की नज़र से देखा जाता है.

"मैं समझती हूं कि जब से ईसाई योद्धा धर्मयुद्ध के नाम पर येरुसलेम को हथियाने और कथित दुष्टमुसलमानों के होश ठिकाने निकले थे, तभी से यह मिथ्या प्रचार चल रहा है. या शायद तब से चल रहा है, जब तुर्क विएना तक पहुंच गये थे. अपरिचित लोगों से डर का हमेशा कोई ऐतिहासिक कारण होता है. लेकिन, मैं यह नहीं समझ पाती कि गौएटे के समय, जब पूर्वदेशीय साहित्य ने यूरोप में रोमैंटिक आन्दोलन को प्रेरणा दी, गौएटे, लेसिंग, शिलर तक जब उससे प्रेरित हुए, तब, मेरा अनुमान है कि हमारे यहां कहीं अधिक खुलापन था. कम से कम सांस्कृतिक धरातल पर दूसरे धर्मों और संस्कृतियों के प्रति कहीं अधिक समझबूझ थी."

क्रिस्टियाने इस बात पर ज़ोर देतीं हैं कि वह लोगों का धर्म परिवर्तन नहीं करना चाहतीं हैं या इसलाम का महिमामंडन कतई नहीं करना चाहती हैं. उनका अपना रास्ता है और इस रास्ते ने उनको अपनी असली पहचान तक पहुंचाया. पांच बार दिन में नमाज़ पढ़ना, शराब न पीना, सभी धार्मिक और व्रत के दिनों का पालन करना, गरीबों को दान देना- क्रिस्टियाने का कहना है कि यह सब उनको सहारा देता है.

"मेरी इस किताब के जरिए यही कामना है कि मैं लोगों को अपना आध्यात्मिक पक्ष जानने के लिए प्रेरित कर सकूं. लोग अपना मन और अपना दिल खोलें. दूसरी और इस्लाम के प्रति जो पूर्वाग्रह हैं मैं उनको कम करने में योगदान देना चाहती हूं. मै दो अलग संस्कृतियों के बीच पुल बनाना चाहती हूं, क्योंकि मैं अब दोनों को जानती हूँ. मै एक समवाद पैदा करना चाहती हूँ."

इस्लामी दुनिया के मशहूर कवि और रहस्यवादी जलालुद्दीन रूमी और अल्लामा इकबाल के लेखन को पढ़ना क्रिस्टियाने को बहुत अच्छा लगने लगा. वह अरबी भी सीखने लगी. होमेओपाथी की भी पढ़ाई की. हज पर भी
गईं. साथ ही कई मुस्लिम देशों की यात्रा भी उन्होंने की. इसके बाद उन्होंने एक जर्मन इस्लामविद् के साथ शादी की. लेकिन यह शादी भी टूट गई. फिर एक ऐक्सक्लूसिव वेबसाईट और दोस्तों के ज़रिए क्रिस्टियाने की मुलाकात मोरोक्को के मशहूर टीवी जर्नलिस्ट रशीद जफार से हुई. जल्द ही दोनों शादी करने के सोचते हैं. एक बार फिर क्रिस्टियाने एक सपना देखतीं हैं. लेकिन शादी के बाद रशीद उन पर बहुत ज्यादा बंदिशें थोपने लगे. और इस तरह दो अलग संस्कृतों के बीच का फ़ासला शादी में अड़चन बनने लगा.

"एक दूसरे का आदर करना सबसे महत्वपूर्ण है. दूसरे को समझने की कोशिश होनी चाहिए, एक खुलापन होना चाहिए. दूसरे के इतिहास को समझना बहुत ज़रूरी है. मैं एक दिन में तो अरबी महिला नहीं बन सकतीं हूं, चाहे मैं कितनी भी कोशिश करूं. मेरे पति ने मुझे शादी के पहले नहीं बताया था कि उसे यह पसंद नहीं कि मैं अन्य पुरूषों के साथ संपर्क में रहूं और वह यह चाहते थें कि एक न एक दिन मैं काम करना बंद कर दूं. चलो, मेरी यह शादी भी सफल नहीं रही. लेकिन ऐसा मैं अपने साथ दोबारा नहीं होने दूंगी."

क्रिस्टियाने की किताब आने के बाद यह भी कहा गया कि वह बहुत भोली है, खासकर यह देखते हुए कि कई मुस्लिम देशों में महिला अधिकारों का उल्लंघन होता है. इस पर क्रिस्टियाने का कहना है कि आम तौर पर यह कहना गलत है कि कि इस्लाम महिला अधिकारों के खिलाफ है. इसलाम में तो कतई यह नहीं लिखा है कि कोई महिला किसी पुरूष से कम है. अगर ऐसा इस्लामी देशों में देखने को मिलता है तो वह इसलिए क्योंकि वह धर्म और संस्कृति की व्याख्या अलग तरीके से करते हैं. क्रिस्टियाने का कहना है कि वक्त ने उसको शांत बनाया. आज वह एक ट्रैवल चैनेल के लिए एक शो पेश करतीं हैं और अंतरराष्ट्रीय चैनल एब्रू टीवी के लिए एक शो भी करती हैं जिसका नाम है „Matters of Faith“. इस वक्त क्रिस्टियाने अकेली रहतीं लेकिन उन्हें उम्मीद है कि एक ना एक दिन उन्हें एक सच्चा साथी मिलेगा. इन्‍शा अल्लाह.
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Kristiane is a Practising Homeopath 
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ایم ٹی وی سے مکہ تک‘‘، کرسٹیانے باکر کی نئی کتاب 

English Book "from MTV to Makkah" Downlaod
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उर्दू अनुवाद रिलीज 'एम टीवी से मक्‍का तक' 

भारत में लालच देकर धर्म-परिवर्तन कराया जा रहा है

भारत में लालच देकर धर्म-परिवर्तन कराया जा रहा है

‘‘भारत में पहले मुस्लिम शासनकाल में ज़ोर-ज़बरदस्ती से मुसलमान बनाया जाता रहा। अब लालच देकर धर्म-परिवर्तन कराया जा रहा है। यह साज़िश भी है कि मुस्लिम नवयुवक हिन्दू लड़कियों से संबंध बढ़ाएं, धर्म परिवर्तन कराएं, ब्याह करें और अपनी जनसंख्या बढ़ाएं। यह परिस्थिति असह्य है, साम्प्रदायिक तनाव पैदा करती, हिंसा भड़काती है...।’’

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विषय-वस्तु पर, यहां तीन पहलुओं से दृष्टि डाल कर उपरोक्त शिकायत या संदेह और ग़लतफ़हमी को दूर करने तथा आपत्ति व आक्षेप का निवारण करने का प्रयास किया जा रहा है।

1. धर्म परिवर्तन के बारे में इस्लाम की नीति।2. मुस्लिम शासनकाल में धर्म-परिवर्तन।3. वर्तमान में ‘धर्म-परिवर्तन’ के विषय में मुस्लिम पक्ष।

1. धर्म-परिवर्तन के बारे में इस्लाम की नीतिइस्लामी नीतियों, नियमों, शिक्षाओं तथा आदेशों-निर्देशों के मूल स्रोत दो हैं: एक—पवित्र ईशग्रंथ क़ुरआन;दो: इस्लाम के वैश्वीय आह्वाहक हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰)। 

इन दोनों मूल स्रोतों में पूरी मानव जाति को संबोधित करके विशुद्ध एकेश्वरवाद (तथा परलोकवाद व ईशदूतवाद) पर ईमान लाने का आह्वान दिया गया है। इस ईमान के अनुकूल पूरा जीवन बिताने की शिक्षा दी गई है; और कभी बौद्धिक तर्क द्वारा, कभी मानवजाति के दीर्घ इतिहास के हवाले से, इस ईमान व अमल के इहलौकिक व पारलौकिक फ़ायदे बताए गए हैं तथा इस ईमान व अमल के इन्कार, अवहेलना, तिरस्कार एवं विरोध की इहलौकिक व पारलौकिक हानियां बताई गई हैं।

इसके बाद, इस्लाम की नीति यह है कि इस आह्वान पर सकारात्मक (Affirmative) या नकारात्मक (Negative) प्रतिक्रिया (Response) एक सर्वथा व्यक्तिगत कर्म तथा ‘बन्दा और ईश्वर’ के बीच एक मामला है। ऐसी व्यक्तिगत प्रतिक्रिया को इस्लाम ने पूर्णतः व्यक्ति के ‘विवेक’ और ‘स्वतंत्र चयन-नीति’ का विषय क़रार देते हुए, इस मामले में किसी आम मुसलमान को तो क्या, अपने रसूलों (ईशदूतों) को—और अन्तिम ईशदूत हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को भी—बन्दे और ईश्वर के बीच हस्तक्षेप का अधिकार नहीं दिया है। (क़ुरआन, 88:22, 2:256)

2. मुस्लिम-शासनकाल में धर्म-परिवर्तनयदि मुस्लिम शासनकाल में ऐसी कुछ घटनाएं घटी हैं तो वे इस्लाम के विरुद्ध घटीं। मुस्लिम शासक इस्लाम के प्रतिनिधि और वर्तमान के मुसलमानाने हिन्द के आदर्श (Role Model) नहीं थे, न हैं। यदि उनमें से किसी ने सचमुच ऐसा किया तो इस्लामी शिक्षा के विरुद्ध किया, पाप किया, जिसकी सज़ा उसे परलोक में ईश्वर देगा। वर्तमान के मुसलमान इसके उत्तरदायी नहीं हैं।

ऊपर, ‘यदि’ और ‘सचमुच’ के शब्द इसलिए प्रयोग किए गए हैं कि इतिहास ऐसी घटनाओं की न केवल पुष्टि नहीं करता बल्कि इनका खंडन करता है। नगण्य मात्र में कुछ अपवाद (Exceptions) तो हो सकते हैं। यहां ‘इतिहास’ से अभिप्राय वह इतिहास नहीं है जो (‘‘फूट डालो, नफ़रत पैदा करो, लड़ाओ और शासन करो’’ की सोची-समझी नीति और गहरी तथा व्यापक साज़िश से) अंग्रेज़ों ने लिखी; या जिसे कुछ विशेष मानसिकता और नीति का एक ‘विशेष वर्ग’ साठ-सत्तर वर्ष से अब तक लिखता आ रहा है। अनेकानेक निष्ठावान व सत्य-भाषी ग़ैर-मुस्लिम (=हिन्दू) विद्वानों, प्रबुद्धजनों, शोधकर्ताओं, विचारकों तथा इतिहासकारों ने उपरोक्त आरोप का भरपूर व सशक्त खंडन किया है; हां यह बात अवश्य है कि ऐसे साहित्य व शोधकार्य तक आम देशवासियों की पहुंच नहीं है। (इस संक्षिप्त आलेख में, उपरोक्त खंडन को उद्धृत करने का अवसर नहीं है। संक्षेप में बस इतना लिख देना पर्याप्त है कि) उन विद्वानों के अनुसार, उस काल में हुए धर्म-परिवर्तन के पांच मूल कारक थे:

एक: वर्ण-व्यवस्था द्वारा सताए, दबाए, कुचले जाने वाले असंख्य लोगों ने इस्लाम में बराबरी, सम्मान व बंधुत्व पाकर धर्म-परिवर्तन किया।दो: इस्लाम की मूल-धारणाओं को अपनी मूल प्रकृति के ठीक अनुवू$ल पाकर इस्लाम ग्रहण किया। तीन: इस्लामी इबादतों (जैसे ‘नमाज़’) की सहजता व सुन्दरता तथा गरिमा के आकर्षण ने लोगों को इस्लाम के समीप पहुंचाया। चार: इस्लामी सभ्यता की उत्कृष्ठता, हुस्न, गरिमा तथा महात्म्य और उसकी पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक प्रशंसनीय ख़ूबियों ने लोगों को इस्लाम के साये में पहुंचाया, और पांच: इस्लामी राज्य-व्यवस्था में इन्साफ़ व अद्ल (न्याय) तथा शान्ति-स्थापना ने लोगों को इस्लाम की ओर आकर्षित किया।

मुंशी प्रेमचन्द, एम॰एन॰ राय, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, स्वामी विवेकानंद, विशम्भरनाथ पाण्डेय, प्रोफ़ेसर के॰ एस॰ रामाराव, राजेन्द्र नारायण लाल, काशीराम चावला, बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर, वेनगताचलम अडियार, पेरियार ई॰वी॰ रामास्वामी, कोडिक्कल चेलप्पा और स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य...सिर्फ़ कुछ नाम हैं (बेशुमार नामों में से) जिन्होंने या तो इस्लाम की उत्कृष्ट ख़ूबियां बताई हैं, या मुस्लिम शासनकाल में धर्म परिवर्तन के वास्तविक (Factual) कारकों को लिखा है।

3. वर्तमान में ‘धर्म-परिवर्तन’—मुस्लिम-पक्षआज (और वर्षों-वर्षों से) लगभग पूरी दुनिया की तरह भारतवासी भी धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। कुछ अन्य धर्मों के धर्म-प्रचारक यदि धर्म-परिवर्तन कराते हों तो कराते हों, जो भी तरीक़ा अख़्तियार करते हों, और उद्देश्य जो कुछ भी हो, उस सबसे भारतीय मुसलमानों का मामला बिल्कुल भिन्न है। वे अच्छी तरह जानते हैं किलालच देकर या ज़ोर-ज़बरदस्ती से धर्म परिवर्तन कराना पाप है; इस्लाम उन्हें इसकी अनुमति नहीं देता। (सन अस्सी के दहे में दक्षिण-भारत में कई गांवों के सैकड़ों लोगों ने इस्लाम स्वीकार किया था तब ‘पेट्रोडॉलर’ के इस्तेमाल की बात ख़ूब उछाली गई थी। देश के कोने-कोने से ‘उच्च वर्ग’ खिंच-खिंचकर वहां पहुंच गया था। पत्रिका ‘सरिता’ के अन्वेषक भी वहां पहुंचे थे और फिर विस्तार से लिखा था कि पेट्रोडॉलर की लालच ने नहीं, सदियों से अछूत, दलित, शोषित तथा व्यापक रूप से तिरस्कृत रहने वाले लोगों के लिए इस्लाम द्वारा प्रदत्त ‘मानव-समानता’ व ‘मानव-सम्मान’ ने उन्हें धर्म परिवर्तित कराके इस्लाम की गोद में पहुंचाया)। दलितपन, शोषण, अछूतपन, अपमान तथा अत्याचार की स्थिति अभी भी विद्यमान है जो धर्म-परिवर्तन का कारक बन रही है। शायद वर्ण-व्यवस्था इस स्थिति को सदा क़ायम रखेगी।

इस्लाम ने दुनिया के हर मुसलमान को, क़ुरआन में यह बताकर कि ‘‘तुम उत्तम समुदाय हो जो मानवजाति की भलाई के लिए उत्पन्न किए गए हो...(3:110)’’ और ‘‘(लोगों को) अपने रब के रास्ते (सत्य मार्ग) की ओर सूझ-बूझ, अच्छे वचन तथा उत्तम वाद-संवाद द्वारा बुलाओ (16:125)’’; यह आदेश दिया है कि मानवजाति के हित व उपकार में, लोगों के शुभाकांक्षी (Well-wisher) बनकर इस्लाम का प्रचार, प्रसार, आह्वान करो। भारतीय मुस्लिमों में से कुछ लोग यह पुण्य, पवित्रा काम निस्वार्थ भाव से अंजाम दे रहे हैं, इस्लाम का संदेश देश बंधुओं तक पहुंचा रहे हैं। उन तक उनकी मातृभाषा में ईशग्रंथ क़ुरआन, अपने सामर्थ्य भर पहुंचा रहे हैं; उनका काम यहीं तक—मात्रा यहीं तक—है; पूरा देश इसका साक्षी है। इसके बाद कुछ लोग अगर अपना धर्म परिवर्तित करके सत्य मार्ग पर आ जाना, सत्य धर्म स्वीकार कर लेना पसन्द कर लेते हैं तो यह ‘उनके’ और ‘ईश्वर के’ बीच व्यक्तिगत मामला है।

जहां तक ग़ैर-मुस्लिम लड़कियों के विवाह हेतु धर्म परिवर्तन की बात है, इसमें प्रमुख भूमिका आधुनिक कल्चर की है। सहशिक्षा (Co-education) के दौरान विद्यालयों में तथा नौकरी के दौरान कार्य स्थलों पर नवयुवकों-नवयुवतियों का स्वतंत्रापूर्वक मेल-जोल,एकांत-भेंट स्वाभाविक रूप से दोनों को कुछ अधिक घनिष्ठ संबंध बनाने का अवसर देता है। नवजवान लड़कों-लड़कियों को ‘ब्वॉयफ्रेंड’ और ‘गर्लफ्रेंड’ कल्चर का तोहफ़ाजिस पर हमारे समाज का आधुनिकतावादी वर्ग बहुत गर्व करता हैइस्लाम या मुसलमानों ने बनाकर नहीं परोसा है। ये ‘घनिष्ठ’ संबंध अन्दर-अन्दर वैसे-वैसे अनैतिक रूप धारण करते या कर सकते हैं, इससे बेपरवाह और संवेदनहीन समाज के पास शायद इस आपत्ति का औचित्य नहीं रह जाता है कि किसी युवक-युवती ने परस्पर विवाह करके स्वयं को अनैतिक कार्य और दुष्कर्म से बचा लिया।बदलते-बिगड़ते सामाजिक वातावरण की ऐसी (नगण्य) व छुट-पुट व्यक्तिगत घटनाओं को मुसलमानों की ‘साज़िश’ क़रार देना एक स्पष्ट मिथ्यारोपण है